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सम्पूर्ण स्वास्थ्य एवं जागरूकता (पार्ट 2)

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हमारे रोगों पर वैज्ञानिकों ने खोजा कि 70 से 80 प्रतिशत जो रोग हमें लगते हैं वह मन के कारण लगते हैं| बड़ी से बड़ी जो बीमारी हमें होती हैं वह मन के कारण होती हैं, हमारे अन्दर गांठें बन जाती हैं, ये गांठें केंसर का रोग बन जाती हैं| हमें पता भी नहीं लगता कि कब हमें रोग लग जाते हैं| और हम उसके बजह को ढूढते रहते हैं| मित्रो पहले मैंने आपको 3 चीजो के विषय में बताया जिससे शरीर स्वस्थ हो सके और एक चोथी चीज ये भी जो मन है, इसका भी ध्यान रखना है, मन में जो सूक्ष्म रूप से अहंकार रहता है उसको चोटें लगती रहती हैं, उन चोटों को हम अन्दर ही अन्दर सहते रहते हैं यानि जो पिता ने, पति ने, आफिस में बोस ने या किसी ऐसे व्यक्ति ने जिसे हम कुछ नहीं कह पाते पलट कर जबाब नहीं दे पाते, उन्होंने जब कुछ कह दिया और वह बात मन में छिपे अहंकार तक पहुंची, फिर वह अन्दर ही अन्दर पनपती रहती है, और धीरे धीरे वही गांठ बन जाती है| और वह केंसर का रूप ले लेती है| आप ध्यान देंगे कि ये घटनाएँ तो जीवन में 10 प्रतिशत ही होती हैं, 90 प्रतिशत तो हमारा जीवन सुखमय है, लेकिन हमारा 10 प्रतिशत 90 प्रतिशत पर भरी होता है| जबकि 90 प्रतिशत को हावी होना चाहिए था लेकिन 10 प्रतिशत जो दुःख है वह हमारे ऊपर हावी होता है, आप देखें क्या रोज रोज किसी को चोट लगती है, या रोज रोज कोई किसी को कुछ कहता है ये बातें कभी कभार ही होती हैं फिर भी हम इन्ही को लिये बैठे रहते हैं, और रोगों को निमंत्रण देते रहते हैं| आज के समय में इस प्रकार की समस्याओं के निवारण के लिए ध्यान तैयार किये गए हैं जिसमें सबसे अच्छा है रेचन जिसमें हँसना, रोना, चीखना, चिल्लाना होता है| बिलकुल बच्चे की तरह, बच्चे को किसी प्रकार की फिकर नहीं होती कि कोई क्या कहेगा, बस इसी प्रकार से रेचन करना होता है| जब हम किसी से कुछ नहीं कह सकते, और बात हमारे अन्दर बैठ जाती है| तो एकांत में रेचन करें, रोना आये तो रोयें, हँसना आये तो हंसें, चीखना चिल्लाना हो तो चीखें चिल्लाएं एकदम खाली हो जाएँ, हल्के फुल्के हो जाएँ| यह बहुत ही असरकारक है हमारे शरीर के रोगों के लिए जिन्हें असाध्य रोग कहा जाता है| मैं कहता हूँ कि मन में अतीत की जो गंथी हैं वह पिघल जाएँगी| और दूसरा ख्याल क्या रखना है कि भविष्य में गांठ ही ना बनने दें| मन के चित की वृत्ति अगर बदल जाये तो दूसरा जीवन हो जाता है|

||ओम आनंदम||