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परमात्मा से मिलन का सरल मार्ग

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आप सभी कहते हैं कि परमात्मा हमारे अन्दर है और ये भी मानते हैं कि परमात्मा बाहर भी है, अब ये जो बाते हैं कि परमात्मा बाहर भी है और अन्दर भी | अब ये देखें कि इसके पीछे किसका अस्तित्व है? इन बातों के पीछे कौन है? एक बात ये भी आई थी कि जो सन्देश वाहक रहे हैं वे संत रहे या ऋषि, पैगम्बर हुए वे हमें इशारे करते हैं वे हमें बताते हैं कि ऐसे ऐसे परमात्मा है और ज्यादातर सभी मानते हैं कि ऐसा है| एक बात और आई थी कि हम सभी परमात्मा हैं| अब थोडा ध्यान दें अभी तक हम सुनते आये हैं कि तीन शक्तियां हैं| 1. प्रकृति 2. जीव 3. आत्मा| प्रकति हमें नजर आती हैं जीव हमें नजर आती है| क्या प्रकृति कभी नष्ट हो सकती है| नष्ट नहीं हो सकती| अब देखें मानव कैसे बना? उससे पहले ये पृथ्वी बनी होगी, उससे पहले सूरज बना होगा, सूरज से पहले ग्लेक्सी बनी होगी| ज्यादा गहरे में न जाकर मैंने पूछ लिए कि मानव कौसे बना? हम अभी दो चीजों से सहमत है प्रकृति है और जीव है| जो पहले प्रश्न था परमात्मा है ये किसने बताया तो उतर आया कि ऋषि, पैगम्बर आदि ने बताया, कैसे बताया? पहले उन्होंने जाना फिर बताया| अब ये अनुभव करने वाला कौन? इन्सान जिसको हम गुरु कहें, जिसको हम संदेश वाहक कहें वह भी तो इन्सान ही है, और जो अनुभव कर लेता है वह परमात्मा तुल्य हो जाता है जैसे भगवान बुद्ध, कबीर साहब, नानक जी, आदि जिसका भी आप नाम लेंगे, उनके भीतर की अभिव्यक्ति और उनके आचरण का जो रूप और स्वरुप है उनमें और हम में फर्क क्यों है? हम कहते हैं जो गुरु बैठे हैं वही सब कुछ हैं| हम तो तुच्छ हैं हम वहाँ गति कैसे करेंगे? और इन्हीं विस्वास और मान्यताओं के कारण हमने उन इष्ट देव की मूरत बना ली, और मूरत बना कर हमने मंदिरों में सजा दी और वहीँ पूजा अर्चना करने लगे| ऐसे ही मानव ने अपने चारों और जाल बुन लिया है और फंस गया है| परमात्मा की व्याख्या करने वाला कौन?



मैं यानि प्राणी कहते है कि तीसरी शक्ति है कहते हैं कि वह कभी नहीं मिटती, न कभी नष्ट होती, उसी ने सब कुछ रचा है, पहले हमने दो चीजे बताई एक प्रकृति है और जीव है अगर कोई तीसरी चीज जन्मी है तो वह इन दोनों के द्वारा जन्मी है| वेद प्रकट हुए इन्हीं से, एसी बना इन्हीं से, अध्यात्म बना इन्हीं से, विज्ञान बना इन्ही से| और इन्ही से प्रकट हुआ कि कोई शक्ति है जिसको हम परमात्मा कहें, लेकिन उस शक्ति जो अनुभव करता हैं तो उसके भीतर से से एक अभिव्यक्ति होती है वो अनुभव कहलाता है| अब जब हम ये जान गए हैं कि परमात्मा हमारे अंदर ही है तो इसका मतलब ये हुआ कि परमात्मा सभी के अन्दर है और हम क्या करते हैं मंदिर में जो हमने मूरत बनी है जो मंदिर बनाया है जो धार्मिक स्थल बनाये हैं उनके आगे हम झुकते है लेकिन जो परमात्मा कि जो जीवंत मूरत है जो प्राणी है उसके आगे नहीं झुकते| जब हमें पता है कि परमात्मा मेरे अन्दर भी है इसके अंदर भी है तो इर्ष्या द्वेष क्यों, छल कपट क्यों, उस जीवन्त मूरत से प्रेम करो ये परमात्मा से मिलन का सरल मार्ग है|



||ओम आनंदम||